भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 24 पैसे गिरा: शुरुआती कारोबार में कमजोरी
30 जुलाई 2025 को सुबह के कारोबार में भारतीय रुपया 24 पैसे कमजोर होकर 87.15 के स्तर पर पहुंच गया। यह गिरावट मंगलवार को 86.91 पर बंद होने के बाद चार महीने के निचले स्तर को दर्शाती है। महीने के अंत में आयातकों की ओर से डॉलर की मांग बढ़ने, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की अनिश्चितता ने विदेशी मुद्रा बाजार में इस कमजोरी का कारण बना। विशेषज्ञों का मत है कि लगातार विदेशी पूंजी की निकासी ने रुपये पर दबाव बढ़ा दिया है। हम इस लेख में रुपये की इस कमजोरी के कारणों, बाजार में होने वाले बदलावों, और इसके आर्थिक प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
रुपये की गिरावट की मुख्य वजह
- कच्चे तेल की लागत में वृद्धि: अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड की कीमत 0.11% बढ़कर 72.59 डॉलर प्रति बैरल हो गई। भारत, जो अपनी तेल आवश्यकता का 80% से अधिक आयात करता है, इस बढ़ोतरी से प्रभावित हुआ और रुपये पर दबाव बढ़ा।
- भारत-अमेरिका व्यापार विवाद: अमेरिकी नीतियों में संभावित टैरिफ वृद्धि की चर्चा ने बाजार में अनिश्चितता पैदा की है। इससे निवेशकों की भरोसा घटी और रुपये कमजोर हो गए।
- विदेशी धन की बाहर निकासी: Foreign Institutional Investors (FIIs) ने मंगलवार को 4,636.60 करोड़ रुपये की इक्विटी बेची। रुपये की स्थिति इस निकासी से और खराब हुई।
- आयातकों से रुपये की मांग: महीने के अंत में तेल विपणन कंपनियों और अन्य आयातकों की मांग बढ़ने से रुपये पर अतिरिक्त दबाव पड़ा। भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 24 पैसे गिरा:
बाजार का रुख और विशेषज्ञों की राय
भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 24 पैसे गिरा: रुपया अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में खुलकर 87.15 के स्तर तक गिर गया। मंगलवार को 86,91 पर बंद हुआ था। Forex विश्लेषक अनिल कुमार भंसाली ने कहा, “कच्चे तेल की कीमतों में उछाल और व्यापार समझौते पर अनिश्चितता ने रुपये को 87 के स्तर के पार धकेल दिया।” “
सेंसेक्स 126.27 अंक बढ़कर 81,464.22 पर और निफ्टी 45.90 अंक बढ़कर 24,867.00 पर कारोबार कर रहा था। लेकिन रुपये की कमजोरी ने निवेशकों को सतर्क कर दिया। व्यापार वार्ता में कोई प्रगति न होने पर दबाव बढ़ सकता है, लेकिन कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह गिरावट अस्थायी हो सकता है।
रुपये की भविष्य की दिशा
श्लेषकों का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की नीतियां और वैश्विक आर्थिक हालात रुपये का भविष्य निर्धारित करेंगे। रुपये को स्थिर करने के लिए आरबीआई का 600 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार हस्तक्षेप कर सकता है। लेकिन रुपये पर दबाव बनी रह सकता है अगर व्यापार टैरिफ और कच्चे तेल की कीमतें अनिश्चित रहती हैं।
आर्थिक प्रभाव और संभावनाएं
इलेक्ट्रॉनिक्स, तेल और अन्य कच्चे माल को रुपये की कमजोरी से आयात करना महंगा हो सकता है। इससे मुद्रास्फीति बढ़ने का खतरा है, जो आम उपभोक्ताओं पर असर डाल सकता है। दूसरी ओर, निर्यातकों को रुपये की कमजोरी से लाभ मिल सकता है, क्योंकि उनकी आय विदेशी मुद्रा में बढ़ेगी। हालाँकि, अमेरिका टैरिफ बढ़ाने से निर्यात क्षेत्र भी प्रभावित हो सकता है।
निष्कर्ष
वैश्विक और घरेलू कारक आज भारतीय रुपये को कमजोर कर रहे हैं। रुपये को कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि, व्यापार सौदे पर अनिश्चितता और विदेशी पूंजी की निकासी ने प्रभावित किया है। कारोबारियों और निवेशकों को RBI की नीतियों और बाजार के रुझानों पर नजर रखनी चाहिए। रुपये की स्थिरता के लिए वैश्विक व्यापार वार्ता और आर्थिक घटनाक्रम महत्वपूर्ण होंगे।
